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Saturday, December 31, 2016

हिन्दी कविता जीने की सीख

विता:-जीने की सीख
लेखक:-युधिष्ठिर महतो(कुमार युडी)

जब मैं छोटा बच्चा था,
सभी के दिलों में बसता था,
सभी की बातें सुनता था,
पर जैसे मैं बड़ा हुआ,
न कोई मेरी बातें सुनता है,
और न कोई मुझे समझता हैं।।

बचपन के भी क्या वो दिन थे,
जब कोई भेद भाव न था,
सभी मिल-जुल कर खेलते थे,
एक ही थाली में खाते थे,
पर जब मैं बड़ा हुआ,
सभी भेद-भाव की बातें करने लगे,
जाति धर्म की बातें सुनाने लगे।।

पर शायद ज़िन्दगी की यही रीत हैं,
जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगा,
वैसे-वैसे नये-नये लोग मिलेंगे,
पर अपने सिद्धांतों को सदा जीवित रखना,
चाहे कुछ भी,पर तुम न बदलना।।

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