संगीत शिक्षक के तरह ही रंगमंच के भी शिक्षक होने चाहिए-बशिष्ठ प्रसाद सिंह
""झारखण्ड के कलाकारों को कोई सुविधा नहीं दी जाती हैं-वशिष्ठ प्रसाद सिन्हा""कला निकेतन प्रमुख व् अनुभवी रंगकर्मी वशिष्ठ प्रसाद सिन्हा झारखण्ड के बहुत ही प्रसिद्ध रंगकर्मी हैं।प्रारंभिक जीवन से ही इन्हें रंगकर्मी की शिक्षा दी गयी।चूँकि, इनके पिता भी एक रंगकर्मी ही रहें हैं।इस वजह से शुरू से एक माहौल मिला।इनकी रूचि लेखनी और अभिनय में ज़्यादा रही हैं।शुरुआत भी इस प्रकार हुई।1976-77 ई. पटना में बाढ़ आई हुई थी।उस पर आधारित एक गीत इनका रेडियो में प्रसारित हुआ था।इसके बाद 1981 ई. धनबाद में इनका आगमन हुआ।यही रह कर अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी करने के बाद अपने नेतृत्व में एक टीम का निर्माण किये।लेकिन,लोगों ने उस समय इनके काबिलियत को नहीं समझे।फिर भी इन्हें काम करने में ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई।इनके पास थोड़ी बहुत जरूरते थी।जैसे कुछ कलाकार,लाइट और स्टेज।इन्होंने गाँव के कलाकारों के साथ ही थिएटर को विकसित करते गये।लेकिन,लोगो का विरोध भी सहना पड़ा।1981 ई. में ही एक नाटक अछूत कन्या का भूली के लोगो ने ही विरोध किया।जिसकी कहानी कुछ ऐसी थी।जो लोगो को पसंद नहीं आयी।पर,इन सब घटनाओं के बावजूद इनका मनोबल कम नहीं हुआ।इन्होंने 1981 ई. में ही समाज को बदल डालो एक नाटक लिखी।जिसका मंचन इन्होंने कुछ बुजुर्ग लोगो को जोड़कर किया।जो काफी सराहनीय रहा।लीगो ने इस नाटक की काफी प्रशंसा भी की।इस तरह से काम आगे बढ़ता रहा।फिर 3 दिसम्बर 1982 को कला निकेतन की शुरुआत हुई।जहाँ से लगभग लगभग सभी कलाकार सीखते हैं।धनबाद झारखण्ड में कला निकेतन इतना प्रसिद्ध हैं कि जो भी कलाकार रंगमंच से जुड़े हैं।उन्हें इस विषय में जानकारी हैं कि पूरे धनबाद में एक ही रंगमंच संस्था हैं।जो लगातार सक्रिय हैं और बेहतर काम भी कर रही हैं।1987 ई. में शादी के बाद पत्नी का काफी विरोध सहना पड़ा।चूँकि, नाटक में अपनी पुत्रियों को ला चुके थे।इस बात से इनकी पत्नी ज़्यादा नाराज थी।लेकिन,बाद में दाम्पत्य जीवन बचाने के लिए इनकी पत्नी भी रंगमंच से जुड़ गई।इनकी पत्नी ने सखाराम बाइंडर में चंपा की भूमिका निभाई।इस प्रकार इनका पूरा परिवार ही रंगकर्मी बन गए।इन सब कार्यो के सात साथ ये नौकरी भी करते थे।लेकिन,जब कुछ दिक्कतें आने लगी।तो,फिर 2006 में नौकरी छोड़कर पूरी तरह से रंगमंच के लिए ही काम करने लगे।इनके कार्यो के सम्मान में इन्हें राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित भी किया जा चूका हैं।लेकिन,इस बात से काफी ज़्यादा खफ़ा हैं कि सरकार कलाकारों के लिए बहुत ही काम रही हैं।जबकि,होना बहुत कुछ चाहिए।हालाँकि,झारखण्ड कला सांस्कृतिक विभाग पहले से ज़्यादा जागरूक हुई हैं।युवा वर्ग को इनका सन्देश हैं कि जो भी कलाकार रंगकर्मी के रूप में उभारना चाहते हैं।वे सबसे पहले थिएटर सीखें।क्योंकि,बिना सीखें आप ज़ादा दूर नहीं जा सकते हो।
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