झारखण्ड में फिल्म और संगीत का विकास अच्छे कलाकारों से ही संभव हैं-बुलु घोष
""अपनी एक अलग ही सोच व् संगीत के लिए जाने जाते हैं बुलु घोष""राँची झारखण्ड के एक बहुत ही विख्यात संगीतकार बुलु घोष,जो बुलु पापा के नाम से जाने जाते हैं।ये हमेशा से ही दूसरों से अपनी एक अलग ही पहचान रखते हैं।बुलु घोष अपने अलग ही अंदाज़, सोच व् संगीत के लिए मशहूर हैं।वर्तमान में बुलु घोष फिल्म तकनीकी सलाहकार समिति के सदस्य भी हैं।बचपन में माता-पिता के साथ दक्षिण भारत में रहा करते थे।लेकिन,किन्ही कारणवष बुलु घोष की माँ को दक्षिण भारत का माहौल पसंद नहीं आया।इस कारण बुलु घोष 3 वर्ष की उम्र में अपने माता पिता और भाई के साथ झारखण्ड चले आये।1972-73 की बात हैं।उस वक्त बुलु घोष 16 वर्ष के थे।चूँकि, घर का माहौल एक मध्यमवर्गीय परिवार सा था।तो सीधे संगीत के क्षेत्र में आना ज़रा मुश्किल था।उन दिनों बुलु अपने छोटे भाई पापा के साथ ही अधिकतर रहा करते थे।ऐसे ही पड़ोस में कुछ कार्यक्रम था।वहाँ दोनों भाई गये।कई दोस्त बने।जो आगे चलकर एक ग्रुप के रूप में उभरे।लेकिन,सबसे ज़्यादा आकर्षण तब हुआ।जब दोनों भाई सरकस देखने किसी मेले में गये हुए थे।वहाँ स्टेज पर कलाकारों को देखकर इनके मन में भी एक भावना जगी।उस दिन के बाद से इनके जीवन में संगीत ने एक जगह बना ली थी।शुरुआत में शौकिया गाया बजाया करते थे।जो बुलु बजाते।वही पापा भी बजाते।माउथ ऑर्गन से शुरुआत हुई।जो एक रिश्तेदार के सहयोग से गिटार में बदली।फिर संगीत की शिक्षा भी लेने लगे।10-20 दिनों में ही इंट्रूमेंट बजाने में माहिर हो गए।शुरू-शुरू में बिना ग्रुप के ही कार्यक्रम की प्रस्तुति दिया करते थे।1975 तक बुलु पापा के नाम से ये काफी मशहूर हुए और आगे इसी नाम से प्रस्तुति भी देने लगे।कई सालों तक होटल में 2-3 घंटो के लिए भी प्रस्तुति दिया करते थे।ये हमेशा से ही कुछ अलग करने की सोचते रहते थे।इस कारण 1979 में बिहार में इको साउंड से कार्यक्रम करने वाले ये पहले ग्रुप बनें।उस जमाने में भी ये 7 म्यूजिशियन के साथ कार्यक्रम की प्रस्तुति दिया करते थे।जिसमें से 3 कीबोर्डिस्ट ही होते थे।अकसर उस समय एक सबसे बड़ी समस्या होती थी कि ग्रुप हमेशा बनता और टूट जाता था।इसका कारण यही था कि कलाकार इसे हमेशा के लिए नहीं करना चाहते थे।तब बुलु घोष ने सोचा क्यों न एक ग्रुप बनाया जाया।जो बीटल्स ग्रुप की काम करें।फिर इन्होंने अपने ग्रुप में कुछ ऐसे कलाकारों को जोड़े।जो सिर्फ और सिर्फ इस ग्रुप के लिए काम करते थे।1979 में सिंदरी धनबाद की मिताली घोष,जो एक मशहूर गायिका हैं।उनके ग्रुप से जुड़ जाने के बाद ग्रुप और भी मजबूत हो गया।जिनसे आगे चलके बुलु घोष ने 1980 में शादी भी की।इस दरमियान यह जोड़ी आज तक साथ में अनगिनत म्यूजिकल वर्क कर चुकी हैं।जो आज भी जारी हैं।70-80 के दशक में एक ही म्यूजिकल ग्रुप था बुलु पापा म्यूजिकल ग्रुप।जिनकी प्रसिद्धि आज भी बनी हुई हैं।पुरे बिहार झारखण्ड में ऑर्केस्ट्रा की शुरुआत इन्ही की देन हैं।इन्होंने ही सबसे पहले म्यूजिकल प्रोग्राम की शुरुआत झारखण्ड बिहार में की थी।सबको साथ जोड़ के रखने के लिए भी बुलु घोष कई तरह की नई नई सोच अपनाया करते थे।जैसे होटल्स जैसे पब्लिक प्लेस पर कार्यक्रम करना।क्योंकि,स्पेशल प्रोग्राम सिर्फ त्यौहार पर ही मिला करता था।लेकिन,इससे भी बात नहीं बनी।फिर इन्होंने झारखण्ड में क्षेत्रीय संगीत की लोकप्रियता को देखते हुए अपना खुद का म्यूजिक स्टूडियो 1983 में बिप्स ऑडियो विसुअल्स के नाम से खोले।जो बिहार का पहला म्यूजिक स्टूडियो हैं।इस स्टूडियो के माध्यम से इन्होंने लोकल टैलेंट को आगे बढ़ने में काफी सहयोग किया।साथ नागपुरी का पहला अलबम नागपुर कर कोरा भी बनाया।जैसे-जैसे दौर बदलते गया।इन्होंने भी कई बदलाव किये।1982-83 में जब गुलशन कुमार से मिले।तो इन्होंने एक छोटी सी बात कही कि पुराने बॉलीवुड गानों को फिर से बनाये।ऐसा करने से बहुत ही फायदा होगा।पहले तो गुलशन कुमार ने इस बात को मज़ाक में लिया।लेकिन,जब बुलु घोष ने राँची के कलाकारों से ही यह काम किया और जब गुलशन कुमार से फिर मिले ।तो उन्होंने भी इस काम को आगे बढ़ाया।इस तरह 2000 तक बुलु घोष टी-सीरीज से जुड़े रहें।इन सालों में 1983 से 1996 का दौर काफी कठिन रहा।कभी लोन नहीं चूका पाने के कारण काम बंद हुआ।फिर किसी के सहयोग से चालू हुआ।पर,यह लगातार आगे बढ़ते रहा।आज भी कोई पर्व त्यौहार हो।बिप्स ऑडियो विसुअल्स से हमेशा कलाकार अपनी प्रस्तुति देते आये हैं।बुलु घोष 15-16 घंटो तक आज भी संगीत से जुड़कर काम करते रहते हैं।अब तक इन्होंने कई म्यूजिक एल्बम और फिल्म कर चुके हैं।लेकिन,सजना अनाड़ी और उलगुलान ए क्रांति उनका पसंदीदा काम रहा हैं।युवा को इनका यहीं कहना हैं कि पहले सीखे।फिर काम करें।
""झारखण्ड में संगीत और फिल्म के विकास के लिए फिल्म तकनिकी सलाहकार समिति बनी हैं-बुलु घोष""झारखण्ड में हर साल करीब 30 से 40 फ़िल्में और कई म्यूजिक एल्बम छोटे बड़े स्तर पर बन रही हैं।लेकिन,इनमें से कुछ ही काम ऐसा होता हैं।जिसकी गुणवत्ता अच्छी होती हैं।इसका सबसे बड़ा कारण हैं कि यहाँ आज भी अच्छे टीम की कमी हैं।न ही अच्छे इंस्टिट्यूट हैं।जो कलाकारों को बेहतर ट्रेनिंग दे सके।जो भी अच्छे कलाकार हैं।वे यहाँ काम करना ही नहीं चाहते हैं।इन छोटी छोटी चीजों को विकसित करने की जरूरत हैं।फिल्म और म्यूजिक से जुडी हर चीजों के विकास से ही झारखण्ड एक फ़िल्म और संगीत उद्योग केंद्र के रूप में उभरेगा।इसी के लिए सरकार ने फिल्म नीति 2015 के तहत फिल्म तकनिकी सलाहकार समिति का गठन किया गया हैं।जिसमें कोई भी कलाकार अपने फिल्म का प्रोजेक्ट तैयार कर आवेदन कर सकता हैं।आवेदन की विशेष जानकारी के ऑनलाइन पीआरडी झारखण्ड डॉट इन से प्राप्त कर सकते हैं।ऑनलाइन आवेदन फॉर्म और फिल्म नीति 2015 के बारे में डाउनलोड करके सारी जानकारी ले सकते हैं।
''''सभी कलाकारों के लिए बनाया बिम्मा डॉट इन-बुलु घोष"'झारखण्ड के संगीत और फिल्म से जुडी तमाम जानकारी को एक वेबसाइट में उपलब्ध कराया गया हैं।www.bimma.in एक ऐसी वेबसाइट हैं।जहाँ मुफ्त में म्यूजिक, मीडिया और कला से सम्बंधित चीजे सीख सकते हैं।आगे इस इंस्टिट्यूट को यूनिवर्सिटी की तरह विकसित किया जाएगा।जहां से कोई भी कलाकार लाभान्वित हो सकता हैं।साथ ही इस इंस्टिट्यूट का सबसे बड़ा उद्धेश्य हैं,झारखण्ड के लुप्त लोकगीतों को आगे बढ़ाना।
""झारखण्ड में टीवी चैनल का न होना दुःखद हैं-बुलु घोष""झारखण्ड में टीवी चैनल और रेडियो चैनल का ज़्यादा न होना बहुत ही दुःखद की बाद हैं।लेकिन,चूँकि यहाँ विज्ञापन का मार्केट ज़्यादा न होने से बिजनेसमैन ज़्यादा रूचि नहीं ले रहे हैं।पर,अगर कोई शुरुआत करना चाहें।तो बहुत ही छोटे स्तर से शुरू कर सकता हैं।सरकार भी चाहती हैं कि कोई आगे आये।इसके लिए सरकार भी मदद करेगी।
""ऑनलाइन का बाजार बड़ा हैं-बुलु घोष"'"आज ऑनलाइन का ज़माना हैं।लोग इन्टरनेट का इस्तेमाल ज़्यादा से ज़्यादा करते हैं।इसलिए,आज के कलाकार ऑनलाइन भी अपनी कला का प्रदर्शन बेहतर ढंग से कर सकते हैं।ढ़ेर सारी ऑनलाइन वेबसाइट हैं।जिसके जरिये अपने आप को प्रोमोट कर सकते हैं।साथ ही फ़ायदा भी कमा सकते हैं।
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