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Saturday, February 4, 2017

डब्लूडब्लुई के पहले भारतीय पहलवान दी ग्रेट खली

द ग्रेट खली के नाम से मशहूर दलीप सिंह राणा आज भले ही दौलत और शोहरत की बुलंदियों पर हैं, लेकिन एक वह भी समय था जब उन्हें रोजाना पांच रुपये कमाने के लिए दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ती थी। एक-एक पैसे को मोहताज उनके माता-पिता बेटे की पढ़ाई के लिए ढाई रुपये की स्कूली फीस चुकाने में भी असमर्थ थे। लिहाजा महज आठ साल की उम्र में खली स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर गांव के खेतों में मजदूरी करने पर मजबूर हो गए। खेतों में दिनभर पौधों की रोपाई करने की एवज में उन्हें पांच रुपये मिलते थे। बचपन में बेहद खराब दौर से गुजरे दलीप सिंह राणा एक समय अपने कद के कारण लोगों के बीच उपहास का पात्र भी बने।
कुश्ती में पदार्पण...
वह सब कुछ कर दिखाया जो उनसे पहले किसी भारतीय ने नहीं किया था। वह डब्ल्यूडब्ल्यूई में पदार्पण करने वाले पहले भारतीय पहलवान बने। खेतों में दिनभर पौधों की रोपाई करने की एवज में उन्हें पांच रुपये मिलते थे। बचपन में बेहद खराब दौर से गुजरे दलीप सिंह राणा एक समय अपने कद के कारण लोगों के बीच उपहास का पात्र भी बने। बाद में खली ने कुश्ती में पदार्पण किया और वह सब कुछ कर दिखाया जो उनसे पहले किसी भारतीय ने नहीं किया था। वह डब्ल्यूडब्ल्यूई में पदार्पण करने वाले पहले भारतीय पहलवान बने। खली और विनीत के बंसल द्वारा संयुक्त रूप से लिखी गई किताब ‘द मैन हू बिकेम खली’ में विश्व हैवीवेट चैंपियनशिप जीतने वाले इस धुरंधर के जीवन के कई पहलुओं को छुआ गया है।
फीस के कारण 1979 में स्कूल से निकाल दिया..
फसल सूख जाने के कारण माता-पिता फीस नहीं भर पाए, तो क्लास टीचर ने उन्हें पूरी क्लास के सामने अपमानित किया और छात्रों ने भी उनका मजाक उड़ाया। इसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि कभी स्कूल नहीं जाएंगे। खली ने कहा, ‘स्कूल से मेरा नाता हमेशा के लिए टूट गया। मैं काम में जुट गया ताकि परिवार की मदद कर सकूं। एक दिन मैं अपने पिता के साथ था, तो पता चला कि गांव में दिहाड़ी मजदूरी के लिए एक आदमी की जरूरत है। मैं पांच रुपये रोजाना पर दिहाड़ी मजदूरी करने लगा। मेरे लिए उस समय पांच रुपये बहुत बड़ी रकम थी। मुझे ढाई रुपये नहीं होने के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा था और पांच रुपये तो उससे दुगुने थे।’

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