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Saturday, April 1, 2017

प्लेटफॉर्म नंबर सात उपेक्षित शौषित युवक युवतियों की कहानी हैं।

पूर्व आईएएस अधिकारी व् वरिष्ठ साहित्यकार श्रीराम दुबे का जन्म उत्तरप्रदेश बलिया ज़िले में हुआ।उनके पिता पश्चिम बंगाल रेलवे अंडाल में कार्यरत थे।इस कारण से श्रीराम दुबे की शिक्षा वर्धमान में हुई।जैसे जैसे बड़े हुए।इनके मन में लिखने पढ़ने की अभिलाषा बढ़ती गई।बिहार झारखण्ड में आईएएस अधिकारी के रूप में सेवा दी।फिर एक दौर शुरू हुआ।इनके लिखने का दौर,जो आज लगातार जारी हैं।अभी तक इनके द्वारा कई पुस्तकें और उपन्यास लिखी जा चुकी हैं।आज कल इनकी नवचर्चित उपन्यास प्लेटफॉर्म नंबर सात प्रकाशित हो चुकी हैं।जिसकी कहानी और पात्र धनबाद स्टेशन के ही दक्षिणी छोर पर बसे प्लेटफॉर्म नंबर सात की हैं।ये उन दिनों की बातें हैं।जब यह प्लेटफॉर्म काफी उपेक्षित था।एक आध ट्रेनें ही रुका करती थी।उस समय श्रीराम दुबे 1980-84 तक विशेष रेलवे जुडिशियर मैजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत थे।इस प्लेटफॉर्म के आस पास बसी छाई गद्दा बस्ती के लोग अपना अधिकतर समय प्लेटफॉर्म सात पर ही बिताया करते थे।कई अनाथ बच्चें इसी प्लेटफॉर्म पर पैदा हो जाते थे।फिर बड़े होकर वही बच्चे अशिक्षा और गरीबी के कारण गलत कार्यो में लग जाते हैं।कई लड़कियाँ देह व्यापार में भी सक्रिय होती हैं।इस तरह से इनका जीवन चलता जाता हैं।लेकिन,जब इनका शौषण कुछ ज़्यादा हो जाता हैं।तब कुछ पात्र जंगल के उग्रवाद जीवन को अपना लेते हैं।कई सालों तक इस तरह जीने के बाद वापस प्लेटफॉर्म नंबर साथ लौट आते हैं।इस तरह अगर देखा जाएँ,तो प्लेटफॉर्म नंबर साथ उपेक्षित,शौषित युवक युवतियों की ज़िन्दगी को बयाँ करती हैं।जो समाज व् प्रशासन के द्वारा उपेक्षित व् शौषित हैं।आज तो प्लेटफॉर्म नंबर सात की स्तिथि थोड़ी बदली जरूर हैं।पर,शायद आस पास के युवक युवतियों की ज़िन्दगी में कई बदलाव आज भी बाकी हैं।श्रीराम दुबे ने अपनी कलम की ताकत से एक प्रयास किया हैं।रेलवे और जंगल से जुड़ी इन घटनाओं के माध्यम से समाज के  लोगों को उपेक्षित शौषित लोगों की ज़िन्दगी से अवगत कराने की।

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