देश के सबसे युवा राष्ट्रपति का राजनीतिक सफर पूरी जीवन कहानी।
नीलम संजीव रेड्डी (२७ अक्टूबर, १९२० - ९ नवंबर, २००५) भारत के छठे राष्ट्रपति थे। उनका कार्यकाल २५ जुलाई १९७७ से २५ जुलाई १९८२ तक रहा। आन्ध्र प्रदेश के कृषक परिवार में जन्मे नीलम संजीव रेड्डी की छवि कवि, अनुभवी राजनेता एवं कुशल प्रशासक के रूप में थी। इनका सार्वजनिक जीवन उत्कृष्ट था। सन १९७७ के आम चुनाव में जब इंदिरा गांधी की पराजय हुई, उस समय नव-गठित राजनीतिक दल जनता पार्टी ने इनको राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाया। वे भारत के पहले गैर काँग्रेसी राष्ट्रपति थे। वे अक्टूबर 1956 मे आन्ध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बनें और दुसरी बार फिर १९६२ से १९६४ तक यह पद संभाला। उन्होने १९५९ से १९६२ तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में से कार्य किया।
देश के सबसे युवा राष्ट्रपति ने 25 जुलाई साल 1977 को पद की शपथ ली थी। देश का सबसे युवा राष्ट्रपति इससे पहले भी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुका था। साल 1969 में ही राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मौत के बाद कांग्रेस ने नीलम रेड्डी को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन इंदिरा गांधी ने पीएम की कुर्सी जाने के डर से अपने समर्थन सांसदों और विधायकों को अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने को कहा और नीलम रेड्डी चुनाव हार गए।
अगर उस वक्त नीलम संजीव रेड्डी चुनाव जीत गए होते तो 55 साल में ही राष्ट्रपति बन जाते। लेकिन इस बार उनको सफलता नहीं मिली। आखिरकार 1977 में गैर-कांग्रेसी दलों की मदद से संजीव रेड्डी सिर्फ 65 साल की उम्र में सबसे ऊंचे पद पर विराजमान हुए।
नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति तो बन गए। लेकिन वो दौर ऐसा था कि सियासत में भूचाल आया था। चार साल के अंदर ही नीलम रेड्डी ने तीन सरकारों को आते-जाते देखा। उनके राष्ट्रपति काल में मोरारजी देसाई, चरण सिंह और फिर इंदिरा गांधी की सरकार रही। 1982 में उनका कार्यकाल पूरा हुआ. इसके बाद जैल सिंह राष्ट्रपति बने।
नीलम रेड्डी 19 मई को साल 1913 में मद्रास प्रेसिडेंसी के इल्लू गांव में पैदा हुए थे। नीलम रेड्डी ने आजादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उनका दबदबा सियासत में काफी पहले से था। याद कीजिए वो दिन, जब तेलंगाना और आंध्र के साथ मिलाया गया था तो पहले सीएम के तौर पर नीलम रेड्डी ने ही शपथ ली थी। नीलम साहब दो बार आंध्र प्रदेश के सीएम रहे। इसके बाद उन्होंने लोकसभा की तरफ रूख किया और दो बार लोकसभा के अध्यक्ष रहे। इतना ही नहीं, उनको केंद्रीय मंत्रिमंडल जगह भी दी गई।
कांग्रेस में नीलम संजीव रेड्डी की कद इतना बड़ा था कि साल 1960 और 1962 के दौरान वो तीन बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। तीन बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
आजादी की लड़ाई में भी संजीव रेड्डी का योगदान किसी से कम नहीं था। साल 1931 की बात है, वो अपने कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी को सुना। फिर क्या था, पढ़ाई-लिखाई का अब औचित्य रह नहीं गया था। संजीव रेड्डी ने पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। नीलम रेड्डी यूथ लीग से जुड़े रहे। साल 1938 में आंध्र प्रदेश प्रांतीय कांग्रेस समिति के सचिव चुने गए। इस पद पर 10 सालों तक उनको कोई डिगा नहीं पाया। आजादी के दीवानों की तरह संजीव रेड्डी भी साल 1940 से 1945 तक जेल में रहे।
नीलम संजीव रेड्डी ने कभी भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। एक वाक्या याद है कि जब उनका कार्यकाल खत्म हो रहा था और उन्होंने विदाई भाषण दिया था। उसमें उन्होंने तीनों सरकारों की आलोचना की थी। नीलम रेड्डी ने मजबूत विपक्ष को खड़ा करने पर जोर दिया।
नीलम संजीव रेड्डी का कार्यकाल खत्म हो गया तो दिल्ली या बैंगलोर में रहने की बजाय वो अपने घर जाने का फैसला किया। संजीव रेड्डी ने अनंतपुर को अपना ठिकाना बनाया और कृषि के काम में जुट गए। कर्नाटक के तत्कालीन सीएम रामकृष्ण हेगड़े ने उनको बैंगलोर में बसने का न्योता दिया था, लेकिन उनको अपना घर सबसे प्यारा लगा। 1 जून 1996 में आखिरी सांस लेने तक वो अपने घर से जुड़े रहे।
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