Our social:

Sunday, February 5, 2017

अधूरे सपने-समाज की वास्तविकता

शीर्षक:-अधूरे सपने 
लेखक:-युधिष्ठिर महतो(कुमार यूडी)  
साहेब और मुकेश कचड़ा उठाने का करते है|मुकेश के नाना नानी फ़िरोज़ाबाद में रहते हैं|वे लोग चूड़ी बनाने का काम करते हैं|मुकेश बड़ा होकर मैकेनिक बनना चाहता हैं|साहेब भी एक पायलेट बनना चाहता हैं|दोनों के माता पिता बहुत ही गरीब होने के कारन कोई भी अपना सपना पूरा नही कर पाता हैं|मुकेश अपने जिस काम में था|वह वही करता हैं|साहेब कूड़ा कचड़ा का काम छोड़ कर होटल में काम करने लगता हैं|दोनो दोस्त सड़क के फुटपाथ पर बैठकर बातें कर रहे है|   
साहेब:-मुकेश अब तू फ़िरोज़ाबाद जा रहा हैं|क्या तू फिर कभी नहीं आएगा|        
  मुकेश:-अरे,नहीं देख मैं बड़ा होकर मैकेनीक बनना चाहता हूँ|पर मेरे पास पैसे कहाँ हैं|इसलिए अपने नाना नानी के पास जा रहा हूँ|            साहेब:-अच्छा हर महीने कॉल जरूर करना |     मुकेश:-जरूर करूँगा |वैसे तू भी तो पायलेट बनना चाहता हैं|जब तू पायलेट बनेगा |तो मुझे मेकेनिक रख लेना|               
साहेब:-ठीक हैं तेरी ट्रैन कितने बजे हैं?     मुकेश:-शाम को हैं|      
साहेब:-प्रिया से मिल लेना|वो भी तुम्हें बहुत याद करेगी|  
मुकेश:-अच्छा याद दिलाया |लेकिन,उसका घर भी तो बहुत दूर हैं|  
साहेब:-मिलेगा तो उसे अच्छा लगेगा |   मुकेश:-एक काम कर मैं तुम्हे एक चिट्ठी लिख  देता हूँ|उसे दे देना|             
साहेब:-ठीक हैं मैं उसे देदे दूँगा|    
मुकेश फ़िरोज़ाबाद चल जाता हैं|वहां पहुंचकर मुकेश भी चूड़ी बनाने का काम करने लगता हैं|प्रिया और साहेब रोज़ाना कचड़ा उठाने का काम किया करते हैं|साथ ही हर महीने मुकेश के कॉल का इंतज़ार किया करते हैं| यूँ ही कई महीने बीत जाते हैं|एक दिन मुकेश का कॉल आता हैं|प्रिया और साहेब कचड़े के ढ़ेर में कुछ खोज रहे हैं|तभी सामने से दूकान वाला साहेब को बुलाता हैं|  दूकानवाला:-साहेब मुकेश का फ़ोन आया हैं|  साहेब और प्रिया दौड़े दौड़ आते हैं।
साहेब:-हेलो,मुकेश कैसा हैं रे?इतने दिनों बाद हमारी याद आयी।
मुकेश:-ऐसा नहीं हैं।समय ही नहीं मिल पा रहा था।
साहेब:-अच्छा अब तू बड़ा आदमी हो गया हैं।
मुकेश:-अच्छा बाबा माफ़ी माँगता हूँ।अब खुश।
साहेब:-ठीक हैं।मैंने माफ़ किया।पर प्रिया बहुत नाराज हैं।तू जाते समय मिला भी नहीं।और अभी इतने दिनों बाद कॉल कर रहा हैं।
मुकेश:-कैसी हैं?
साहेब:-बहुत गुस्से में हैं।ले बात कर।
प्रिया साहेब से फ़ोन लेती हैं।
प्रिया:-हाँ हेलो।वहाँ जाते ही हमे भूल गए।
मुकेश:-अरे पगली,तुमलोगो को कैसे भूल सकता हूँ?तुम लोग ही मेरे सच्चे साथी हो।
प्रिया:-वापस कब आ रहे हो?
मुकेश:-पता नहीं आ पाउँगा या नही।सोचा था।यहाँ आकर पढाई भी करूँगा।लेकिन,बहुत मुश्किल हैं।शायद हमारे किस्मत में गरीबी ही हैं।
प्रिया:-तो क्या तुम नहीं आओगे।
मुकेश:-देखते हैं।आगे जो संभव हो।
प्रिया:-ठीक हैं।तब रखती हूं।
कॉल कट करके फ़ोन रख देता हैं।साहेब और प्रिया अपने अपने काम में जुट जातें हैं।

0 comments: