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Tuesday, March 21, 2017

दर्जनों खोरठा हिंदी पुस्तकें लिख चुके हैं महेंद्र प्रबुद्ध

महेंद्र प्रबुद्ध हिंदी खोरठा साहित्य के क्षेत्र में एक ऐसा नाम जिन्होंने धनबाद जैसे शहर में रह कर ही अपनी कलम का जादू बिखेरा।ये मूलतः गिरिडीह ज़िला के छोटे से गाँव लोहेडीह के रहने वाले हैं।चूँकि, ये धनबाद रेलवे में अधीक्षक के पद पर कार्य करते थे।इस कारण अब ये धनबाद में ही रहते हैं।अपने स्कूल के दिनों से ही इन्होंने लिखना प्रारंभ कर दिया था।शुरुआत में हिंदी काव्य की रचना मुख्य तौर पर कविता,नाटक लेखन व् मंचन किया करते थे।डीएवी हाई स्कूल धनबाद में पढाई के दौरान ही कवियों और लेखकों से काफी प्रभावित हुए।हर वर्ष जब स्कूल में वार्षिकोत्सव के कवि और लेखकों को आमंत्रित किया जाता था।तो, उनके संपर्क में इनका रुझान और भी बढ़ता गया।उस समय रामनारायण पांडेय,जानकी वल्लभ शास्त्री,नीरज,सुभद्रा कुमारी चौहान,हंस कुमार तिवारी जैसे प्रसिद्ध कवि गण के संपर्क से ये ज़्यादा प्रभावित हुए।इसके अलावे क्षेत्रीय भाषाओं के कवियों विकल शास्त्री,श्रीनिवास पानुरी से भी प्रभावित हुए।स्कूल से प्रकाशित पत्रिका ऋषि सन्देश में महेंद्र प्रबुद्ध की पहली हिंदी रचना कंजूसी का परिणाम प्रकाशित हुआ।इसके बाद फिर जब खोरठा कवि साहित्यकार श्याम सुंदर महतो से मिले ।तो,इनसे प्रेरित होकर 2001 से खोरठा लेखन की ओर उन्मुख हुए।आज भी ये लगातार हिंदी खोरठा साहित्य में सक्रीय हैं।इनकी प्रमुख रचनायें परास के फूल,तीन काठ धान आदि दर्जनों हिंदी खोरठा पुस्तकें हैं।जो प्रकाशित हुए हैं।हर वर्ष इनकी कोई न कोई पुस्तक प्रकाशित होती ही रहती हैं।साथ ही कई मासिक खोरठा पत्र पत्रिकाओं का भी प्रकाशन इनके द्वारा किया जाता रहा हैं।

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